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( वाकिफ हूँ मै )

लम्हे-फुरसत के
लम्हे-फुरसत के
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तुझे लगता है मै तेरी अदा से हूँ नही वाकिफ
वफा का नाम लेता है वफा फिर भी नही करता
छुपाना चाहता है जो तेरी बातो मे दिखता है
मै गलती कर के आया हूँ कभी फिर से नही करता

यकी टूटा नही मेरा अभी कुछ तो मुकम्मल है
समन्दर तैर के आया हूँ भंवरो से नही डरता
कभी अपनी गलतकारी पे तू जी भर के रोयेगा
मै दिन का ख्वाब हूँ ” सौरभ ”
कभी लौटा नही करता

मेरे दिल के शहर का वो उजाला फिर से लौटेगा
मै चलता हूँ उम्मीदो पे कभी भी रुक नही सकता
मेरे खातिर हँसी लम्हे खुदा ने कुछलिखे होगे
उन्ही की आस मे जीता हूँ मर भी तो नही सकता

(! मेरी कलम से @सौरभ मिश्र !)

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