लम्हे-फुरसत के
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कुछ ख्वाबो को बुला लाया हूँ
कुछ अरमानो को सुला आया हूँ
तेरी यादे जो मेरे दिल मे थी अभी जिदा
मुझको जीने नही देती तो भुला आया हूँ
वो जो हर्फो मे मै अहसास लिखा करता था
खतो मे कैद वो अहसास जला आया हूँ
बैठ के फिर से थोडी देर उन वीरानो मे
जिनको बहना ही था वो अश्क बहा आया हूँ
और जो नाम लिखे थे वहाँ दरख्तो मे
उन नामो से खुद का नाम मिटा आया हूँ
यहाँ यादो को भुलाने की दवा मिलती है
इसीलिये मै फिर से आज पीने आया हूँ
मुझको कुछ घूट पिला दे तेरा क्या जायेगा
मौत के रास्तो पे चलके जीने आया हूँ
(मेरी कलम से सौरभ मिश्र)
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