लम्हे-फुरसत के
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हुस्न के जाम हमेशा पिलाये जाते है
वहा हर रोज आशिक बनाये जाते है
हम भी अन्जान बन के गुजरे उन रास्तो से
जहा पे चाद से चेहरे नजर आ जाते है
वो उम्मीद भरी शाम मे दिख जाते है
वो चादनी से सजी रात मे दिख जाते है
हमको हर बार मुबारक होगे वो लम्हे
जब वो बरसात मे भीगे नजर आ जाते है
वो आँखे भी याद आती है
वो बाते भी याद आती है
जब वो ख्वाबो मे दिखा करते थे
वो राते भी याद आती है
और सर्दी के सर्द मौसम की
मुलाकाते भी याद आती है
वो दूरिया भी याद आती है
वो फासले भी याद आते है
वो तेरे साथ जो मुकम्मल थी
वो महफिले भी याद आती है
वो जो हमको दीवाना कर गयी
वो गलिया भी याद आती है
अब भी”सौरभ” महकते फूलो मे
वो सुर्खिया भी याद आती है
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