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[ वो गलिया ]

लम्हे-फुरसत के
लम्हे-फुरसत के
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उनकी गली से अक्सर हम छुप के गुजर जाते है

वरना ये दुनिया वाले इल्जाम लगाते है

उन खिड़कियो से हरदम महकी हवा का आना

न चाहते हुये भी हरबार ठहर जाते है

ढेरो सवाल आँखे ढेरो जवाब चेहरा

कुछ देर देखता हू वो शरमा के छुप जाते है

उनका नज़र उठाना उनका नज़र झुकाना

जुल्फो से खेलना थोड़ा सा मुस्कुराना

कुछ पल को मौसमो के मिजाज बदल जाते है

रातो को उनको तकना और चाद से परखना

उनका पलट-2 के हर बार थोड़ा हँसना

हर रात इसी बात पे जागे हुये सो जाते है

और दिन भी रात की यादो मे गुजर जाते ह

ै ै

यौवन की गलतकारी बातो की अदाकारी

होठो की नर्मिया चेहरे की ये खुमारी

मन मे दबे हुये ये अरमान सुलग जाते है

दिल छोड़ के वही पे हरबार लौट आते है

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