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[ ग्रीष्म ]

लम्हे-फुरसत के
लम्हे-फुरसत के
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[ ग्रीष्म ]

सूरज क्रोधी सा लगे आतप हुयी गम्भीर

लूक चले धूली उड़े प्यासा पथिक आधीर

प्यासा पथिक आधीर जल रही धरा तवे सी

मानुस व्याकुल हुआ ग्रीष्म जब आयी ऐसी

मरे-मरे से व्रक्ष है जरे-जरे से पात

बादल भी बौरा गये कही न जल की आस

कही न जल की आस मर रहे खग हो प्यासे

जीवो को न मिलत छाव अब वट व्रक्षन से

मानव की ही देन है ऐसी ग्रीष्म गंभीर

अब करत वरुण से प्रार्थना होके मनुज अधीर

[ मेरी कलम से सौरभ मिश्र ]

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