लम्हे-फुरसत के
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हजारो रंज झेले इश्क की सियासत मे
किसी को क्या मिला बेकार की नजाकत मे
इसे पाने के लिये चैन खोना पड़ता है
सब हासिल नही होता यहा शराफत मे
नामुरादो को मुहब्बत कभी मंजूर न थी
हर आसान चीज लोगो मे मशहूर न थी
कौन पहचानता जहा मे लैला मजनू को
इस दुनिया मे आशिकी कभी दस्तूर न थी
कुछ कुर्बान हुये प्यार को निभाने मे
जहा को रहम न आया जहर पिलाने मे
शमा की रोशनी मे हर पतंगा जलता है
कोई तो पूछ ले क्या है नशा मिट जाने मे
तूने “सौरभ” यहा पे क्या पाया
हर बार प्यार किया दिल लगाया
यहा बस दर्द ही मिलता है दिल लगाने मे
चलो सब छोड़ के चलते है मैखाने मे।
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