लम्हे-फुरसत के
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क्यो छोड़कर गये तुम
दिल तोड़कर गये तुम
खामोश हो गये हम
मगरूर हो गये तुम
रो-रो के तड़पते हम
हंस-हंस के गुजरते तुम
हरबार तेरे धोके शीशे सा हो गये हम
पत्थर है तुमने मारे
टुकड़े हुये हमारे
अश्को के ये समन्दर
दर्दो के ये किनारे
इल्जाम क्यो तुम्हारे उपर भी हम लगाये
नादान थे तभी तो हरबार धोके खाये
[ मेरी कलम से सौरभ मिश्र ]
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