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[ उस दरिया के किनारे ]

लम्हे-फुरसत के
लम्हे-फुरसत के
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[ उस दरिया के किनारे ]

चाद और सितारे थे दरिया के हम किनारे थे

वो चौदवी की रात थी मुमताज़ नजारे थे

ऐक चाद था पानी मे ऐक चाद किनारे था

मै उनके सहारे था वो मेरे सहारे थे

आँखो से कुछ कहना आँखो मे कुछ छिपाना

और बार-बार उनके आंचल का ढुलक जाना

फूलो की खुशबू थी मौसम मे थी बहारे

ये इप्तेफाक था, या कुदरत के इशारे थे

कुछ देर देखना फिर आँख झुका लेना

होठो पे हल्की सी मुस्कान सजा लेना

चेहरे पे कुछ हया थी आँखो मे थी खुमारी

हम नफ्स मे थे उनके वो दिल मे हमारे थे

हम इन्तजार मे थे वो इन्तजार मे था

हम भी खुमार मे थे वो भी खुमार मे थे

इज़हार का मौका था इकरार का मौका था

हमने वो लम्हे “सौरभ” आँखो मे गुजारे थे

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