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ऋतुराज

लम्हे-फुरसत के
लम्हे-फुरसत के
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प्रेम पर्व और बसन्त को समर्पित कुछ “दोहे”

[ ऋतुराज ]

नवयौवन को प्राप्तकर इठलाती है बगिया

भ्रमरो को रुचिकर लगे ये बसंत रंगरसिया

शीतलता को विदा कर आया है ऋतुराज

मन्द-मन्द आतप का होन लगा आगाज

व्रक्षो ने भी कर लिया है अपना श्रंगार

युगलो को मादक लगे शीतल मन्द बयार

मन्मथ ने भी जगत मे फेका अपना पाश

प्रेमी को सुन्दर लगे साथी संग विलास

बौराये है आम्र विटप कोयल गाये गीत

सबके मन पे छा गयी अनजानी सी प्रीत

सौरभ आज प्रसन्न है गीत प्रेम के गाये

प्रणयोत्सव के पर्व पे अपनी भेट चढ़ाये

[ मेरी कलम से

सौरभ मिश्र ]

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