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[ रक्त भरे अल्फाज़ ]

लम्हे-फुरसत के
लम्हे-फुरसत के
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ये रक्त भरे अल्फाज़

ये अश्क भरी आँखे

कुछ टूटे हुये कुटुम्ब

ये सर्दी की राते

कुछ भूखे प्यासे लोग

वो चलती थमती सासे

कुछ मरे हुये जज्बात

और कुछ जिन्दा लाशे

कुछ घायल जिन्दा कटे हुये

कुछ जात-पात मे बंटे हुये

कुछ शमशीरो के साये मे

कुछ उम्मीदो मे पड़े हुय

ये दुनिया का दस्तूर रहा

इंसान हमेशा बंटा रहा

कुछ पाया और कुछ छीन लिया

पर खुशियो से महरुम रहा

ये नौकरशाह अमीर हुये

और सच्चे लोग गरीब हुये

ईमान बच गया जिनका “सौरभ”

वो सब भूखे पेट रहे

ये देश हवाले मुर्दो के

और सासे दहशतगर्दो के

आवाम पिस रही पाटो मे

और लोग बिके सन्नाटो मे

[ मेरी कलम से ]

{ सौरभ मिश्र }

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