लम्हे-फुरसत के
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ये दिल मासूम है इस दिल से अदावत न करे
उनसे कह दो कि दिखावे मे मुहब्बत न करे
कही उनकी अदाकारी हमे बरबाद न कर दे
ये कुछ अहसास है इनसे तो बगावत न करे
आजकल वो मरे ख्वाबो मे आने लगे है
दिल मे सोये हुये अरमान जगाने लगे है
ये वो दौर है बीता तो बीत जायेगा
जो कहना है वो कह दे नजाकत न करे
ये खुली खिड़किया,ये मौसमी ठंडी हवाये
ये चाद चौदवी का रात की सारी अदाये
ऐसे लम्हे भी साथ बैठ के गुजारा करे
ये मुहब्बत है इसमे तो सियासत न करे
ये कुछी पल का साथ जिन्दगी बन जायेगा
तू साथ देगी तो हर पल खुशी बन जायेगा
ये हँसी पल भी आपस मे बाटा करे
ये हुस्न खाक है इतनी भी हिफाज़त न करे
[ मेरी कलम से ]
{सौरभ मिश्र}
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