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[ बुरे ख्वाब ]

लम्हे-फुरसत के
लम्हे-फुरसत के
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वो लोग जो अजीज थे जब ख्वाब मे आ जाते है

कुछ सोये हुये जख्म फिर शबाब मे आ जाते है

ऐक सूखा हुआ गुलाब,वो दर्द भरे लम्हे

बरबाद मुहब्बत की याद दिलाते है

हमे याद है हम उनको चोरी से देखते थे

कैसे कहे वो बाते हर रोज सोचते थे

वो गुजरे हुये पल हमे आज भी रुलाते है

इसीलिये हम इश्क के अहसास से घबराते है

वो गलिया जो अब सून्सान हो गयी

कभी वहा पे फूलो से लोग रहा करते थे

उनके जिस्म की खुशबू महसूस करने के लिये

हम अक्सर उन गलियो से यू ही गुजर जाते है

उनकी बातो से हम इप्तेफाक नही रखते

जो कहते है लोग जल्दी ही भूल जाते है

हमने तो जिदगी मे ऐसे भी लोग देखे है

जो याद मे किसी की दुनिया से गुजर जाते है

[ मेरी कलम से

सौरभ मिश्र]

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